जानिए: इनकम टैक्स रिटर्न भरने का तरीका

इनकम टैक्स रिटर्न की एबीसी 
फाइनैंशल ईयर 31 मार्च को खत्म होता है।इसके खत्महोने के बाद ऐसे हर शख्स को इनकम टैक्स विभाग में एक फॉर्म भरकर देना पड़ता है , जिसकी सालानाआमदनी टैक्सेबल होती है , हालांकि नए नियमों के मुताबिक जिन लोगों की सालाना आमदनी कटौती क्लेमकरने के बाद 5 लाख रुपये से कम है , उन्हें रिटर्न भरने से छूट दे दी गई है। वैसे इस नियम में भी कई पेच हैं ,जिनका जिक्र आगे करेंगे। इनकम टैक्स विभाग में जमा किए जाने वाले इस फॉर्म में कोई शख्स बताता है किपिछले फाइनैंशल ईयर में उसे कुल कितनी आमदनी हुई और उसने उस आमदनी पर कितना टैक्स भरा। इसेइनकम टैक्स रिटर्न कहा जाता है। इन दिनों फाइनैंशल ईयर 2010-2011 के लिए इनकम टैक्स रिटर्न भरे जारहे हैं। कहने का मतलब हुआ कि फाइनैंशल ईयर 2010-2011 के लिए रिटर्न साल 2011-12 में भरा जाएगा।ऐसे में इस बार के लिए 2010-11 प्रीवियस ईयर कहलाएगा और 2011-12 को असेसमेंट ईयर कहेंगे।

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किसे भरना है किसे नहीं 
सरकार ने पिछले दिनों ऐलान किया था कि कटौती के बाद जिन सैलरीड लोगों की सालाना इनकम पांच लाखरुपये या उससे कम है , उन्हें रिटर्न भरने की जरूरत नहीं है , लेकिन इसमें कई लोचे हैं।

1. क्या है नया नियम 
आप फाइनैंशल ईयर 2010-11 के लिए रिटर्न भरने से बच सकते हैं , अगर इन शर्तों को पूरा करते हैं :



- कटौती के बाद साल की कुल इनकम पांच लाख रुपये या उससे कम हो।

- इनकम में सिर्फ सैलरी और बैंक सेविंग से मिलनेवाले ब्याज को ही शामिल किया जाएगा।

- सैलरी सिर्फ एक एम्प्लॉयर से मिली हो।

- बैंक में जमा बचत से मिलनेवाला सालाना ब्याज 10 हजार रुपये से कम हो।

- बैंक में बचत खाते के ब्याज पर टैक्स चुका दिया गया हो और इसका ब्यौरा फॉर्म 16 में हो।

2. भरना होगा रिटर्न 
पांच लाख या उससे कम आमदनी के बावजूद भरना होगा रिटर्न अगर

- सैलरी और सेविंग अकाउंट पर मिलनेवाले ब्याज के अलावा और कहीं से भी कोई आमदनी होती है।

- टैक्स बचाने के लिए एफडी या एनएससी में निवेश करते हैं या ईएलएसएस से डिविडेंड मिलता है।

- सेक्शन 80 सीसीएफ में छूट के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड में निवेश कर रखा है।

- एक महीने के लिए भी अपना मकान किराए पर दिया है।

- फाइनैंशल ईयर के दौरान नौकरी बदली है।

- नुकसान को कैरी फॉरवर्ड करना चाहते हैं या फिर रिफंड क्लेम करना है।

पैन और रिटर्न 
- इनकम टैक्स रिटर्न भरने के लिए पैन का होना जरूरी है।

- अगर किसी की सालाना आमदनी टैक्सेबल है तो उसे पैन लेना अनिवार्य है। ऐसे लोग अगर अपने एम्प्लॉयरको पैन उपलब्ध नहीं कराते हैं तो एम्प्लॉयर उनका 20 फीसदी या उससे भी ज्यादा रेट पर टीडीएस काट सकताहै।

- अगर आपकी इनकम टैक्सेबल नहीं है , तो पैन लेना अनिवार्य नहीं है , फिर भी कई तरह के वित्तीय लेन - देनऔर इंश्योरेंस के मामले में पैन की जरूरत होती है , इसलिए बेहतर यही है कि पैन सभी को बनवा लेना चाहिए।

- इनकम टैक्सेबल होने पर अगर किसी के पास पैन नहीं है तो पैन न होने के लिए कोई सजा नहीं है , सजा इसबात के लिए हो सकती है कि पैन न होने के चलते आप रिटर्न फाइल नहीं करा पाए या आपने अपनी आमदनी कोछिपाया।

- जिन लोगों का टीडीएस उनकी कंपनी द्वारा काटा जा चुका है और उन पर टैक्स की कोई देनदारी नहीं बनती ,वे 31 मार्च 2011 तक भी अपना रिटर्न जमा कर सकते हैं।

- ऐसे लोग अगर 31 मार्च 2011 तक अपना रिटर्न जमा नहीं करा पाते , तो उसके बाद उन पर पांच हजाररुपये का जुर्माना लग सकता है।

जमा कहां करें 
सैलरीड क्लास के लोग अपना भरा हुआ रिटर्न फॉर्म अपने असेसमेंटऑफिसर के पास जमा करा सकते हैं। असेसमेंट ऑफिसर के बारे में जानने के लिए इनकम टैक्स की वेबसाइट www.incometaxindia.gov.in पर जाएं और पैन पर क्लिक करें। इसके बाद ' नो योर एओ ' पर क्लिककरें। अब आपसे आपका पैन मांगा जाएगा। पैन भरने के बाद एंटर दबाएं और फिर पेज को लेफ्ट की तरफखिसकाएं। अब अपने आईटीओ वॉर्ड से संबंधित पूरी जानकारी आपके सामने होगी।

रिफंड 
अगर टीडीएस कट जाने के बाद आपने टैक्स सेविंग इनवेस्टमेंट किया है तो ज्यादा कटे टैक्स को आप इनकमटैक्स विभाग से रिफंड करा सकते हैं। ऐसे में रिटर्न फाइल करने के कुछ महीने के अंदर आपको रिफंड मिलजाएगा। यह रकम आपके बैंक अकाउंट में क्रेडिट कर दी जाती है। आप इस रकम को चेक से भी ले सकते हैं। अगररिटर्न भरते वक्त आपको पता चलता है कि आपके ऊपर टीडीएस के अलावा भी टैक्स की देनदारी बन रही है तोउस टैक्स को आपको नैशनलाइज्ड बैंकों की तय शाखाओं में चालान भरकर जमा करा देना चाहिए।

कब तक रखें रेकॉर्ड 
वर्तमान करंट फाइनैंशल ईयर से छह साल पहले तक के मामलों में कानूनी धरपकड़ हो सकती है इसलिए रिटर्नआदि का छह साल तक का रेकॉर्ड आपके पास सुरक्षित होना चाहिए।

रिटर्न भरने का तरीका 
इनकम टैक्स रिटर्न दो तरह से भरा जाता है - मैन्युअली और ऑनलाइन। मैन्युली भरने के लिए फॉर्म या तोकिसी स्टेशनरी की दुकान से लें या फिर साइट www.incometaxindia.gov.in से डाउनलोड कर लें। अबएक ऑप्शन तो यह है कि आप किसी सीए या वकील को फीस देकर अपना फॉर्म भरवा लें। दूसरा तरीका यह हैकि इसे खुद भर लें। आप फॉर्म भरने के लिए इनकम टैक्स विभाग के टीआरपी की मदद भी ले सकते हैं।  अगर आप टीआरपी की मदद से या ऑनलाइन भरना चाहतेहैं तो यहां देखें :

1. टीआरपी की मदद से 
- इस लिंक पर जाएं http://www.trpscheme.com/trp/index.jsp ' लोकेट योर नीयरेस्ट टीआरपी 'क्लिक करें।

- इसके बाद सर्च टीआरपी में जाने के बाद अपना प्रदेश और जिले का नाम भर दें। आपके क्षेत्र के टीआरपी केनाम , पते और फोन नंबर आपको मिल जाएंगे। इनसे संपर्क करें। समय - समय पर इनकम टैक्स विभागटीआरपी के बारे में अखबारों में भी सूचना देता रहता है। टोल फ्री नंबर 1800-10-23738 पर कॉल करके भीटीआरपी से संबंधित सूचनाएं हासिल की जा सकती हैं। यह लाइन सोमवार से शनिवार तक सुबह 9 बजे से शाम6 बजे तक खुली रहती है।

- कोई भी टीआरपी देश में कहीं भी मौजूद आदमी का रिटर्न भर सकता है। टीआरपी की पहचानने के लिए उनकाआईडी कार्ड या सर्टिफिकेट देखें।

- टीआरपी को फॉर्म 16 की फोटोस्टैट दें , ओरिजनल डॉक्यूमेंट न दें। इसकी मदद से वह रिटर्न भरेगा और जमाकरेगा। रिटर्न जमा करने के बाद टीआरपी आपको उसकी रसीद देगा। रिटर्न भरने में कोई गड़बड़ी होती है तोइसके लिए टीआरपी जिम्मेदार होगा।

खर्च कितना रिटर्न भरकर जमा करने का काम टीआरपी बिना किसी फीस के करते हैं , लेकिन फिर भी वेअधिकतम 250 रुपये तक चार्ज कर सकते हैं।

2. ऑनलाइन रिटर्न भरने का तरीका 
ई - रिटर्न भरने के लिए टैक्स से संबंधित कई वेबसाइट्स हैं , लेकिन ये साइट्स आपसे पैसे चार्ज करती हैं। फ्री मेंई - रिटर्न भरना चाहते हैं तो इनकम टैक्स विभाग की साइट से ई - रिटर्न भरना चाहिए। इसके लिए नीचे दिएगए स्टेप को फॉलो करें :

- साइट https://incometaxindiaefiling.gov.in/portal/index.jsp पर जाएं।

- लेफ्ट में डाउनलोड के नीचे ई फाइलिंग असेसमेंट ईयर 2011-12 मेन्यू में इंडिविजुअल / एचयूएफ को दबाएं।

- आईटीआर 1 में एक्सेल यूटिलिटी क्लिक करें। यह इस साल के लिए सहज फॉर्म आ जाएगा। अब डायलॉगबॉक्स में सेव ऑप्शन क्लिक करें। फॉर्म को डेस्कटॉप पर सेव कर लें।

- अब इस फॉर्म को ऑफलाइन ही भर लें।

- फॉर्म भर लेने के बाद ' जेनरेट एक्सएमएल फाइल ' पर क्लिक करके इसका एक्सएएमएल वर्जन तैयार कर लें।

- अब इनकम टैक्स की साइट पर जाकर रजिस्ट्रेशन कराएं और ई - मेल अकाउंट व पासवर्ड हासिल करें।

- इसकी मदद से लॉग - इन करें और ' समिट रिटर्न ' क्लिक कर दें।

- रिटर्न की एक्सएमएल फाइल ब्राउज करके उसे अपलोड कर दें।

- फाइल अपलोड हो जाने के बाद अकनॉलिजमेंट फॉर्म आएगा।

- अगर आपके पास डिजिटल साइन हैं , तो डिजिटल साइन दे दीजिए। रिटर्न का प्रॉसेस यहीं पूरा हो गया।

- अगर डिजिटल साइन नहीं हैं , तो इस अकनॉलेजमेंट फॉर्म पर अपने साइन करें और 120 दिनों के अंदर इसेसाधारण पोस्ट से इस पते पर भेज दें : आईटी विभाग , सीपीसी , पो . बॉ . 1, इलेक्ट्रॉनिक सिटी पोस्ट ऑफिस, बेंगलुरु -560100

- इसके बाद विभाग की तरफ से 15-20 दिन में इस बात का अकनॉलिजमेंट ई - मेल से आएगा कि आपका रिटर्नभरने का काम सफलतापूर्वक पूरा हुआ। कई लोगों को लगता है कि साधारण पोस्ट से अगर फॉर्म बेंगलुरु नहींपहुंचा तो ? ऐसे में अगर 15 दिनों में रिटर्न का अकनॉलेजमेंट मेल न आए तो दोबारा अकनॉलेजमेंट भेज दें।आप बेंगलुरु ऑफिस के फोन नंबर 080-43456700 पर कॉल कर सकते हैं।

खर्च कितना अगर इनकम टैक्स की साइट से भर रहे हैं तो कोई खर्च नहीं है। किसी और साइट से भरते हैं तो100 से 750 रुपये तक खर्च करने पड़ सकते हैं।

कैसे बनते हैं डिजिटल साइन टीसीएस , एमटीएनएल जैसी कई अथॉरिटी हैं , जहां से आप डिजिटलसिग्नेचर बनवा सकते हैं।

कुछ और पेड साइट्स : Taxmile.com, Myitreturn.com, Taxspanner.com, Taxshax.com 

कौन सा फॉर्म किसके लिए 
आईटीआर 1: उन लोगों को भरना है , जिन्हें सैलरी , पेंशन और ब्याज से आमदनी हुई। जिन लोगों के पास एकमकान है और उन्होंने हाउसिंग लोन ले रखा है , उन्हें भी यही फॉर्म भरना है।

आईटीआर 2: अगर आपको सैलरी , पेंशन और ब्याज से हुई आमदनी के अलावा एक से ज्यादा प्रॉपर्टी से आनेवाले किराये , कैपिटल गेंस , डिविडेंड से भी किसी तरह की कोई आमदनी हुई है तो आपको आईटीआर 2 भरनाहोगा। एचयूएफ के लिए भी यही फॉर्म है।

आईटीआर 3: अगर आप किसी फर्म में पाटर्नर हैं तो आईटीआर 3 भरें।

आईटीआर 4: आईटीआर 4 उन लोगों को भरना होता है , जिन्हें किसी बिजनेस , फर्म आदि से इनकम होती है।इसके अलावा स्वरोजगार में लगे लोगों जैसे वकील , डॉक्टर और चार्टर्ड अकाउंटेंट आदि को भी आईटीआर 4फॉर्म ही भरना होता है।

आईटीआर 4S या सुगम 
यह फॉर्म उन छोटे व्यापारियों और प्रफेशनल्स के लिए है , जिनका सालाना टर्नओवर 60 लाख से कम है। ऐसे लोगों को ऑडिटिंग कराने की जरूरत नहीं होती।

कैसे निकालें टैक्सेबल इनकम 

1. 1 अप्रैल 2010 से 31 मार्च 2011 तक सैलरी 
सैलरी पानेवालों को उनके एम्प्लॉयर द्वारा मई - जून में एक सर्टिफिकेट ( फॉर्म 16) दिया जाता है , जिसमेंसैलरी , भत्तों और काटे गए टैक्स यानी टीडीएस का ब्यौरा होता है। ग्रॉस सैलरी में एम्प्लॉयर द्वारा दिए जा रहेतमाम भत्तों को भी शामिल किया जाता है। इन भत्तों पर टैक्स लगता है , लेकिन कुछ शर्तों के साथ इनमें छूटऔर डिडक्शन ली जा सकती है।

सैलरी के मेन आइटम्स 
बेसिक और डीए 
साल भर में आपको जो बेसिक सैलरी और डीए मिलता है , पूरा टैक्सेबल इनकम में जुड़ेगा।

स्पेशल पे अलाउंस 

यह भी पूरा का पूरा टैक्सेबल इनकम में जुड़ेगा।
- हाउस रेंट अलाउंस ( एचआरए )
अगर आप मकान के किराये की रसीदें दफ्तर में जमा करा दें तो एचआरए को खर्च मान लिया जाता है और उसेटैक्सेबल इनकम में नहीं जोड़ा जाता। अगर आप अपने घर में रह रहे हैं या ऐसे घर में हैं , जहां आपको रेंट नहींदेना होता , तो एचआरए आपकी टैक्सेबल इनकम में जोड़ा जाएगा यानी उस पर टैक्स लगेगा। अगर आपकोदफ्तर से एचआरए मिलता है और जिस मकान में आप रह रहे हैं , वह आपके जीवनसाथी या माता - पिता केनाम है तो आप उन्हें साल भर चेक के जरिए किराया देकर टैक्स में छूट पा सकते हैं। छूट पाने के लिए किराये कीरसीदें अपने दफ्तर में जमा कराना जरूरी है। अगर किराया दे रहे हैं तो नीचे दी गई रकमों में से जो सबसे कमहोगी , उस रकम पर आपको टैक्स नहीं देना होगा :


- साल भर में दफ्तर से मिला कुल एचआरए।


- चुकाए गए सालाना किराये की रकम में से सालाना बेसिक सैलरी के 10 फीसदी हिस्से को घटाने पर निकलीरकम।


- अगर दिल्ली जैसे मेट्रो सिटी में हैं तो बेसिक सैलरी का 50 फीसदी और दूसरे शहरों में हैं तो बेसिक सैलरी का40 फीसदी।
ट्रांसपोर्टेशन अलाउंस 
यह अगर आपको हर महीने 800 रुपये तक मिल रहा है , तो वह टैक्सेबल नहीं होगा। 800 रुपये से ज्यादा मिलरहा है तो बाकी रकम पर टैक्स लगेगा।

मेडिकल रीइंबर्समेंट 
यह अगर साल भर में 15 हजार रुपये तक मिल रहा है तो डॉक्टरों और दवाइयों के खर्च की रसीदें दफ्तर में जमाकराकर आप उतनी रकम पर टैक्स बचा सकते हैं। अगर 15 हजार रुपये से ज्यादा मिले तो बाकी रकम आपकीटैक्सेबल आमदनी में जुड़ेगी और उस पर टैक्स देना होगा।

एलटीए लीव टैवल अलाउंस 
यह रकम रसीद देकर क्लेम की जा रही है तो टैक्स नहीं लगेगा। चार साल में सिर्फ दो बार ही रसीद देने परटैक्स में छूट मिलती है। इन चार साल का एक ब्लॉक होता है - वर्तमान में 2006-09 (1 जनवरी 2006 से लेकर31 दिसंबर 2009 तक ) ब्लॉक चल रहा है।

बोनस वैरिएबल पे 
यह पूरा का पूरा टैक्सेबल इनकम में जुड़ेगा।

2. बिजनेस और प्रफेशन 
बिजनेस या प्रफेशन में जो भी आमदनी हुई है , उसे टैक्सेबल इनकम में जोड़ेंगे।

3. जमीन जायदाद से होने वाली इनकम 

4. कैपिटल गेंस 
- किसी संपत्ति या शेयरों को बेचने से होने वाली इनकम कैपिटल गेंस होती है। यह दो तरह का होता है : लॉन्गटर्म कैपिटल गेंस और शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस।

- अगर किसी संपत्ति को उसके खरीदे जाने के तीन साल के भीतर बेचा जाता है , तो उससे होने वाला फायदाशॉर्ट टर्म गेंस होगा और अगर तीन साल के बाद बेचा जाता है तो उसे लॉन्ग टर्म गेंस कहेंगे।

- इसी तरह अगर शेयरों को खरीदे जाने के 12 महीने के अंदर बेच दिए जाते हैं , तो होने वाला लाभ शॉर्ट टर्महोगा और अगर 12 महीने के बाद बेचा जाता है तो उसे लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंस में रखेंगे।

- शॉर्ट टर्म कैपिटल गेंस पर टैक्स देना होता है इसलिए उसे टैक्सेबल इनकम में जोड़ेंगे। लॉन्ग टर्म कैपिटल गेंसपर कोई टैक्स नहीं लगता , इसलिए इसे नहीं जोड़ेंगे।

5. अन्य स्त्रोतों से होने वाली आमदनी 
ऊपर के अलावा बाकी सारी छिटपुट आमदनी इसमें जोड़ें। निम्न सभी स्त्रोतों से मिली आमदनी को टैक्सेबलइनकम में जोड़ा जाएगा :

- सेविंग्स बैंक अकाउंट से मिला ब्याज

- पोस्ट ऑफिस सेविंग्स जैसे एनएससी , किसान विकास पत्र , इंदिरा विकास पत्र , एमआईएस आदि से मिलाब्याज

- किसी को दिए गए उधार से मिला ब्याज

- कंपनी डिपॉजिट्स से मिला ब्याज

- डिबेंचर / बॉन्ड्स से मिला ब्याज

- लॉटरी से हुई आमदनी

- सरकारी सिक्युरिटीज से मिला ब्याज

किस किस इनकम पर नहीं लगता टैक्स 
नीचे दी गई इनकम पर टैक्स नहीं लगता और इसकी कोई ऊपरी सीमा भी नहीं है :

- पीपीएफ / जीपीएफ / ईपीएफ पर मिला ब्याज

- जीओआई टैक्स फ्री बॉन्ड्स पर मिला ब्याज

- शेयर और म्यूचुअल फंड्स पर मिला डिविडेंड

- पोस्ट ऑफिस में खुले किसी सेविंग्स अकाउंट पर मिला ब्याज

- शेयर और इक्विटी म्यूचुअल फंड्स बेचने से हुआ लॉर्न्ग टर्म कैपिटल गेंस ( बशतेर् ट्रांजैक्शन पर लगने वालासिक्युरिटी ट्रांजैक्शन टैक्स पे हो चुका हो ) ।

- कुछ खास रिश्तेदारों से लिए गए गिफ्ट। अगर गैर - रिश्तेदारों से ले रहे हैं तो 50 हजार रुपये से कम कागिफ्ट। गैर - रिश्तेदारों से 50 हजार रुपये से ज्यादा का गिफ्ट ले रहे हैं तो पूरी अमाउंट पर टैक्स देना होगा।

- खेती से हुई आमदनी

- विरासत में मिली जायदाद पर टैक्स नहीं लगेगा , लेकिन अगर उससे किराया मिल रहा है तो उस किराये परटैक्स लगेगा।

लास्ट डेट 
31 जुलाई 
सैलरीड लोगों के लिए
बिजनेस वाले लोगों के लिए , अगर वे अपनी आमदनी की ऑडिटिंग नहीं कराते
सेल्फ एम्प्लॉइड लोगों के लिए , अगर ऑडिटिंग नहीं कराते

30 सितंबर 
ऐसे सभी लोगों , फर्मों या कंपनियों के लिए जो अपनी आमदनी की ऑडिटिंग कराते हैं।

31 मार्च 2012 
जिन लोगों का टीडीएस उनकी कंपनी द्वारा काटा जा चुका है और उन पर टैक्स की कोई देनदारी नहीं बनती , वे31 मार्च 2011 तक भी अपना रिटर्न जमा कर सकते हैं , लेकिन ऐसे लोग अगर 31 मार्च 2012 तक अपनारिटर्न जमा नहीं करा पाते हैं , तो उन पर पांच हजार रुपये का जुर्माना लग सकता है।

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9 comments:

  1. बहुत ही उपयोगी जानकारी.kushal

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  2. bahut hi sarthak jaankari..hardik dhnyawad..

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  3. बहुत ही सरल व् सुन्दर तरीके से बताया गया है।

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  4. बहुत ही सरल व् सुन्दर तरीके से बताया गया है।

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  5. अच्छी जान कारी है

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  6. अच्छी जान कारी है

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  7. अच्छी जान कारी है

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  8. Mai electrician hoo Mai tax bhar sakta hoo yaa Nahi

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